रविवार, 21 सितंबर 2025

कारगिल युद्ध के परमवीर चक्र विजेता — कैप्टन मनोज पांडेय की वीरता और बलिदान की अमर गाथा #Param Vir Chakra Vijeta

ऑपरेशन विजय के दौरान 1999 कारगिल युद्ध के शौर्यपथिक नायक परमवीर चक्र विजेता  (Param Vir Chakra Vijeta) कैप्टन मनोज पांडेय की वीरता एवं बलिदान का परिचय...🌺 🌹 


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✅ रिचय :- भारत के वीरों की पंक्तियों में जब नामों को याद किया जाता है, तो एक ऐसा नाम है जिसने सीमाओं की रक्षा के साथ-साथ साहस की नई मिसालें कायम की। जैसे गोरखा कमांडो कैप्टन मनोज कुमार पांडे। कारगिल युद्ध (1999) में उनकी अदम्य बहादुरी ने उन्हें परमवीर चक्र दिलाया, जो हमारी सर्वोच्च सैन्य वीरता की पहचान है। आइये जानते हैं, मनोज पांडे की जीवनी, उनके बचपन से लेकर सैन्य जीवन, युद्ध की लड़ाइयाँ, वीरगति, एवं उनकी प्रेरणादायक विरासत। सन 1999 में कारगिल युद्ध में उनके विशिष्ट वीरतापूर्ण कार्यों के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान, परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।


✅ कैप्टन मनोज पांडेय का शुरुआती जीवन और शिक्षा  

    📌 जन्म एवं परिवार : कैप्टन मनोज कुमार पांडे का जन्म 25 जून 1975 को यूपी के सिटापुर जिले के रुधा गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम गोपी चंद पांडे और माता का नाम मोहीनी पांडे था। 

    📌 शिक्षा : प्रारंभिक शिक्षा रानी लक्ष्मी बाई मेमोरियल सीनियर सेकेंडरी स्कूल तथा यूपी सैनिक स्कूल, लखनऊ में हुई। 

    📌 स्वभाव एवं रुचियाँ : बचपन से ही साहसिक भाव और देशभक्ति की भावना थी। उन्हें खेल-कूद में विशेष रुचि थी, खासकर बॉक्सिंग और बॉडी बिल्डिंग में। 

✅ परमवीर चक्र विजेता का सैन्य प्रशिक्षण और करियर  

    🚺 NDA और IMA : उन्होंने नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) के 90वें कोर्स से प्रशिक्षण लिया। 

    🚺 7 जून 1997 को उन्होंने भारतीय सेना में कमीशन प्राप्त किया और 1/11 Gorkha Rifles (प्रथम बटालियन) में अधिकारी बने। 

    🚺 उनकी तैनातियाँ कठिन इलाकों में हुईं, जैसे कि सियाचिन और बादलिक क्षेत्र। 


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✅ कारगिल युद्ध एवं वीरता की कहानी  

कारगिल हीरो कैप्टन मनोज कुमार पांडेय भारतीय सेना के एक अधिकारी थे, जिन्हें 1999 के कारगिल युद्ध में उनके विशिष्ट वीरतापूर्ण कार्यों के लिए मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान, परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया था। मनोज कुमार पांडेय 11 गोरखा राइफल्स (1/11 GR) की पहली बटालियन के अधिकारी थे।

    📌 परिस्थिति : 1999 में “Operation Vijay” (ऑपरेशन विजय) के अंतर्गत बादलिक सेक्टर में पाकिस्तानी घुसपैठ हुई थी। 

    📌 जबरटोप और कलुबार का अभियानी हिस्सा : 1/11 Gorkha Rifles की ‘B’ कंपनी को कलुबार रेंज (Khalubar Ridge) और Point 5287 सहित अन्य रणनीतिक टॉप्स कब्ज़ा करने का जिम्मा मिला। कैप्टन मनोज पांडे प्लाटून नंबर 5 का नेतृत्व कर रहे थे। 

    📌 2-3 जुलाई 1999 की रात का घटना क्रम : प्लाटून के बादलिक के कलुबार टॉप की ओर बढ़ते वक्त भारी दुश्मन फायरिंग हुई। 

    📌 उन्होंने अपने दल को सही स्थिति में स्थापित किया, एक सेक्शन को दाहिनी ओर दुश्मन पदों से निपटने हेतु भेजा और खुद बाएँ ओर से अग्रिम हमला किया। दो दुश्मन बंकर उन्होंने नष्ट किए। तीसरे बंकर में कंधे और पैरों में ज़ख्मी होने के बावजूद चौथे बंकर पर ग्रेनेड से हमला किया लेकिन सिर पर गोली लगने से वीरगति प्राप्त की। 

    📌 परमवीर चक्र : उनकी इस अमित बहादुरी और नेतृत्व के लिए उन्हें मृत्यु के पश्चात् सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र प्रदान किया गया। 


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✅ परमवीर चक्र विजेता की वीर गाथा का महत्व 

कैप्टन मनोज पांडे ने न सिर्फ वर्दी पहनने वाले सैनिक को बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र को यह संदेश दिया कि कर्तव्य और समर्पण में जीवन की कीमत से ज़्यादा मूल्य है। कुछ विशेष बातें :

    🚺 उनका आत्म-विश्वास और साहस, जब वे ज़ख्मी हालात में भी आगे बढ़े, प्रेरणादायक है।

    🚺 उनका नेतृत्व, बजाय पीछे हटने के, साथी सैनिकों को प्रेरित करता हुआ आगे बढ़ा।

    🚺 उनकी बहादुरी ने रणनीतिक दृष्टि से कलुबार टॉप को वापस भारतीय नियंत्रण में लाने में निर्णायक भूमिका निभाई।


✅ गोरखा कमांडो की वीरगति तिथि एवं उम्र    

  • वीरगति तिथि : 3 जुलाई 1999 

  • वीरगति के समय कैप्टन मनोज पांडेय की उम्र लगभग 24 वर्ष थी। 


✅ कारगिल युद्ध के परमवीर चक्र विजेता के विरासत और सम्मान  

     📌 नामकरण : उनके नाम पर कई संस्थानों, भवनों, स्कूलों, ब्लॉकों को नामित किया गया है, जैसे कि यूपी सैनिक स्कूल लखनऊ का मुख्य गेट और असेंब्ली हाल, NDA का विज्ञान ब्लॉक आदि। 
    
    📌 स्मारक स्थान : National War Memorial (Param Yodha Sthal) में उनकी प्रतिमा है। 

    📌 सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व : फिल्म “LOC: Kargil” में उन्हें चित्रित किया गया है। 

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✅ प्रेरणा का स्रोत बने गोरखा कमांडो कैप्टन मनोज पांडेय  

उनकी कहानी न सिर्फ़ सेना में भर्ती होने वाले युवाओं के लिए बल्कि हर नागरिक के लिए मिसाल है :

    🚺 देशभक्ति की भावना जगाती है – किस तरह किसी व्यक्ति ने अपनी ज़्यादातर ज़िंदगी सेवा और समर्पण में गुज़ार दी।

    🚺 यह सिखाती है कि परिस्थिति चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, साहस और नैतिक दृढ़ता से काम लिया जाए तो असंभव को संभव बनाया जा सकता है।

    🚺 उनके आदर्श हमें यह याद दिलाते हैं कि वीरता की कीमत सिर्फ़ पुरस्कार नहीं बल्कि याद, सम्मान और इतिहास है।


✅ निष्कर्ष :- कैप्टन मनोज कुमार पांडे की गाथा हमारे लिए यह संदेश लेकर आती है कि सच्चा बलिदान वही है जिसमें व्यक्ति अपने व्यक्तिगत स्वार्थ भूल कर राष्ट्र की सेवा करता है। उनकी बहादुरी, उनकी जिजीविषा — “परमवीर चक्र” जीतने की — आज भी हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपने-अपने क्षेत्र में इमानदारी, साहस और कर्तव्य का निर्वाह करें।


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