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सोमवार, 13 मई 2024

❤️ 😁 फौजन की ज़ुबानी #आसान नहीं है जी, किसी फौजी की पत्नी कहलाना#फौजी की बीबी के दिल ❤️ से

 एक फौजी के बक्से का रहस्य.....❤️ 😁



मैं जब नई-नई ब्याह कर आई थी❤️ ,

पति के पास कुल एक बक्से की कमाई थी।


काले रंग में वो इतराता पड़ा था,

सफेद बड़े अक्षरों में नाम लिखा था।


खोला तो पाया कुछ फाईलें 📔 किताबें, वर्दी और जूते जुराबें...,

और एक डायरी संजोई जिसमें कुछ फौजी बातें…📓।


मैने पूछा, ये बक्सा इतना चौड़ा और कम ऊँचा क्यों है ?

वो बोले, ट्रेन की सीट के नीचे आ जाए इसीलिए…....🚆,

जी कहकर, मैं बहुत मुस्कुराई थी 👸🏻, जैसे जीवन भर की दौलत मैने ही पाई थी 💯।


वो बॉक्स अब मेरे ड्राइंगरूम में एक सीट बन चुका था,

एक सुंदर चादर और कुशन से उसका श्रृंगार हो चला था।


अब गृहस्थी की नई सुबह हो चुकी थी,

घर में सामानों की भीड़ हो चुकी थी।

अगली पोस्टिंग आर्डर आते आते,

बक्सों की संख्या दस हो चुकी थी।


नाम वही, बस साहब की रैंक बदल चुकी थी,

फौजी नंबर और स्थान की नई कड़ी छप चुकी थी 🗻


एक औरत ही समझ सकती है, घर गृहस्थी की कीमत,

अब इन बक्सों से मुझे प्यार हो चला था 💞।

नई जगह घूमने का खुमार चढ़ चुका था 🏔️🏞️।


मैं भी अब फौजी की सयानी बीबी बन चुकी थी,

कभी गुस्सा तो कभी रौब भी जमाने लगी थी ❤️ 😁।


कुछ फूल भी अब जीवन मे खिल चुके थे,

हम दो, अब चार हो चुके थे 👪।


कपड़े, जूते, किताबें, खिलौने सब अथाह हो चले थे,

पैकिंग के अब समय सब पहाड़ हो चले थे।


फिर वही रंगाई चुनाई नाम नंबर लिखाई,

नाम वही, रैंक नई, बस जगह की बदलम-बदलाई।


मत पूछिए, अब तो इन बक्सों में जान बसती थी मेरी,

और यही थी एक फौजी की बीबी की रेलमपेली।


किचेन वाला, रूम वाला, खिलौने वाला, किताबों वाला,

क्रॉकरी वाला, गर्म कपड़े वाला, रज़ाई, गद्दे कुशन तकिये वाला, मोमेंटो वाला, साड़ियों वाला…

ये सब अब बक्सों के नाम पड़ चुके थे,

फौजी के बक्सों के चर्चे अब आम हो चुके थे।


मेरा तो खास बन चुका था वो साड़ियों वाला बॉक्स,

जिसमें था पूरे देश की संस्कृति का एहसास।


संजोए थे इन बक्सों में मैंने वक़्त के कुछ हसीं लम्हें

कुछ नरम गर्म किस्से कुछ किस्से सहमे-सहमे।


यादें वो गोलियाँ बरसाती सरहद की,

कुछ अद्धभुत वादियों के झूमते झरने।


रेगिस्तान की तपती धूप के सुनहरे किस्से,

कड़कड़ाती ठंड के वो कडकड़ाते हिस्से।


समुंद्री लहरों सी गिरती उठती आकांक्षाएं,

कभी अकेलेपन की उदास सी आशाएं 🤦🏻‍♀️


अब बच्चे भी बड़े हो चले थे,

पंख लगा दाना पानी की फिराक में उड़ चले थे।


बक्सों की संख्या पहले से कम हो चली थी,

क्षमता भी इस शरीर की अब क्षीण हो चली थी।


पूरा न सही आधे जन्म का साथ तो इन बक्सों ने भी 

निभाया है 💯,

शुक्रिया क्या अदा करूँ, क्या खोया क्या पाया है।


जारी अभी भी है सफ़र इन बक्सों रथ का,

और कुछ यादों का, वादों का किस्सों का….............✍️।




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🙏🇮🇳जय हिन्द🇮🇳🙏 

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