मंगलवार, 9 सितंबर 2025

उत्तराखंड : वीरभूमि की शौर्य गाथा – कुमाऊँ रेजिमेंट (Kumaon Regiment Centre) और गढ़वाल राइफल्स (Garhwal Rifles) #भारतीय सेना के परमवीर चक्र विजेता

उत्तराखंड की वीरभूमि में भारतीय सेना के  कुमाऊँ रेजिमेंट (Kumaon Regiment Centre)और गढ़वाल राइफल्स  (Garhwal Rifles) की शौर्य गाथा और परमवीर चक्र विजेता कि कहानी...🌹 


Kumaon Regiment Centre #गढ़वाल राइफल्स #परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा #Garhwal Rifles
(उत्तराखण्ड के प्राकृतिक सौंदर्य की एक झलक)

परिचय :- भारत का देवभूमि कहलाने वाला उत्तराखंड केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है, बल्कि यह वीर सपूतों की जन्मभूमि भी है। इस राज्य ने भारतीय सेना को ऐसे जांबाज सिपाही और अधिकारी दिए हैं, जिन्होंने देश की रक्षा में अपनी वीरता और पराक्रम से अमिट छाप छोड़ी है। उत्तराखंड की धरती से दो प्रमुख रेजिमेंट भारतीय सेना की शान बढ़ाती हैं :– कुमाऊँ रेजिमेंट (Kumaon Regiment Centre) और गढ़वाल राइफल्स (Garhwal Rifles)। ये दोनों रेजिमेंट्स भारतीय सैन्य इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हैं।

🚺 उत्तराखंड : वीरों की धरती  

उत्तराखंड का इतिहास गौरवशाली और वीरता से परिपूर्ण है। यहाँ की पहाड़ियों ने हमेशा से कठोर परिश्रम, अनुशासन और शौर्य की भावना पैदा की है। यही कारण है कि इस क्षेत्र से बड़ी संख्या में युवा सेना में भर्ती होते हैं।

लोककथाओं और इतिहास में यहाँ के सैनिकों के साहसिक किस्से मिलते हैं। चाहे 1947 का भारत पाकिस्तान युद्ध हो, 1962 का भारत-चीन युद्ध हो, 1965 और 1971 का भारत-पाक युद्ध या फिर 1999 का कारगिल युद्ध, उत्तराखंड के जवानों ने हमेशा अपने शौर्य का परचम लहराया।

🚺 कुमाऊँ रेजिमेंट (Kumaon Regiment Centre Ranikhet) : वीरों के शौर्य की अमर गाथा  

कुमाऊँ रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे पुरानी और गौरवशाली रेजिमेंट्स में से एक है।

🚺 स्थापना और इतिहास  

कुमाऊँ रेजिमेंट का इतिहास 18वीं शताब्दी से जुड़ा है। इसकी जड़ें ब्रिटिश काल के "Naini Tal Volunteer Rifles" से मिलती हैं। समय के साथ यह विकसित होकर भारतीय सेना की सबसे प्रतिष्ठित रेजिमेंट बन गई।
इसका मुख्यालय उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के रानीखेत में स्थित है, जिसे कुमाऊँ रेजिमेंट सेंटर (Kumaon Regiment Centre) कहा जाता है।

🚺 वीरता और योगदान  

    
    📌 मेजर सोमनाथ शर्मा  (प्रथम परमवीर चक्र विजेता) : 1947-48 के युद्ध में बडगाम (कश्मीर) की लड़ाई में वीरता दिखाकर परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले पहले सैनिक।
       मेजर सोमनाथ शर्मा (प्रथम परमवीर चक्र विजेता) (31 जनवरी, 1923 - 03 नवम्बर 1947) भारतीय सेना की कुमाऊँ रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कंपनी-कमाण्डर थे जिन्होने अक्टूबर-नवम्बर, 1947 के भारत-पाक संघर्ष में हिस्सा लिया था। उन्हें भारत सरकार ने मरणोपरान्त परमवीर चक्र से सम्मानित किया। परमवीर चक्र पाने वाले वे प्रथम व्यक्ति हैं।

    1942 में मेजर सोमनाथ शर्मा जी की नियुक्ति उन्नीसवीं हैदराबाद रेजिमेन्ट की आठवीं बटालियन में हुई। उन्होंने बर्मा में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अराकन अभियान में अपनी सेवाएँ दी जिसके कारण उन्हें मेन्शंड इन डिस्पैचैस में स्थान मिला। बाद में उन्होंने 1947 के भारत-पाक युद्ध में भी लड़े और 03 नवम्बर 1947 को श्रीनगर विमानक्षेत्र से पाकिस्तानी घुसपैठियों को बेदख़ल करते समय वीरगति को प्राप्त हो गये। उनके युद्ध क्षेत्र में इस साहस के कारण मरणोपरान्त परम वीर चक्र मिला।


    📌 परमवीर चक्र विजेता, मेजर शैतान सिंह भाटी :- (जन्म 1 दिसम्बर 1924 तथा मृत्यु 18 नवम्बर 1962) भारतीय सेना के एक अधिकारी थे। इन्हें वर्ष 1963 में मरणोपरांत परमवीर चक्र का सम्मान दिया गया। इनका निधन 1962 के भारत-चीन युद्ध में हुआ था, इन्होंने अपने वतन के लिए काफी संघर्ष किया लेकिन अंत में शहीद हो गये तथा भारत देश का नाम रौशन कर गये। मेजर सिंह स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी करने पर सिंह जोधपुर राज्य बलों में शामिल हुए। जोधपुर की रियासत का भारत में विलय हो जाने के बाद उन्हें Kumaon Regiment Centre में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने नागा हिल्स ऑपरेशन तथा 1961 में गोवा के भारत में विलय में हिस्सा लिया था।

    1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान, कुमाऊं रेजिमेंट की 13वीं बटालियन को चुशूल सेक्टर में तैनात किया गया था। सिंह की कमान के तहत सी कंपनी रेज़ांग ला में एक पोस्ट पर थी। 18 नवंबर 1962 की सुबह चीनी सेना ने हमला कर दिया। सामने से कई असफल हमलों के बाद चीनी सेना ने पीछे से हमला कर किया। भारतीयों ने आखिरी दौर तक लड़ा परन्तु अंततः चीनी हावी हो गए। युद्ध के दौरान सिंह लगातार पोस्टों के बीच सामंजस्य तथा पुनर्गठन बना कर लगातार जवानों का हौसला बढ़ाते रहे। चूँकि वह एक पोस्ट से दूसरी पोस्ट पर बिना किसी सुरक्षा के जा रहे थे अतः वह गंभीर रूप से घायल हो गए और वीर गति को प्राप्त हो गए। उनके इन वीरता भरे देश प्रेम को सम्मान देते हुए भारत सरकार ने वर्ष 1963 में उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया।

    📌 कुमाऊँ स्काउट्स :– जिन्हें "स्नो वॉरियर्स" कहा जाता है, हिमालयी क्षेत्रों में देश की सीमाओं की रक्षा करते हैं।

कुमाऊँ रेजिमेंट के सैनिक अपनी बहादुरी, अनुशासन और अडिग साहस के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं।


रेजिमेंटल सेंटर

रानीखेत, उत्तराखण्ड
अन्य नामCreed Of The Man Eaters

आदर्श वाक्य

Parakramo Vijayate (Valour Triumphs)

War Cry

Kalika Mata Ki Jai (Victory to the Great Goddess Kali)

मार्च (सीमा रक्षा)Bedu Pako Baro Masa
  


Kumaon Regiment Centre #गढ़वाल राइफल्स #परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा #Garhwal Rifles
(उत्तराखण्ड की भौगोलिक स्थिति) 


🚺 गढ़वाल राइफल्स : पराक्रम की मिसाल  

गढ़वाल राइफल्स भारतीय सेना की एक और गौरवशाली रेजिमेंट है, जिसका मुख्यालय उत्तराखंड के लैंसडाउन में स्थित है।

🚺 स्थापना और इतिहास 

गढ़वाल राइफल्स की स्थापना 1887 में हुई थी। प्रारंभ में इसे "गढ़वाल रेजिमेंट" कहा जाता था। ब्रिटिश काल में भी इस रेजिमेंट के जवानों ने अपनी वीरता से पहचान बनाई।

🚺 विक्टोरिया क्रॉस (VC) :-

विक्टोरिया क्रॉस (VC) ब्रिटिश सम्मान प्रणाली का सबसे सर्वोच्च और प्रतिष्ठित सम्मान है। यह ब्रिटिश सशस्त्र बलों के सदस्यों को "दुश्मन की उपस्थिति में" बहादुरी के लिए दिया जाता है और इसे मरणोपरांत भी दिया जा सकता है। यह पहले ब्रिटिश साम्राज्य (बाद में राष्ट्रमंडल) के सैनिकों को भी दिया जाता था, लेकिन अब अधिकांश स्वतंत्र राष्ट्रों ने अपनी खुद की सम्मान प्रणाली स्थापित कर ली है और वे ब्रिटिश सम्मानों की सिफारिश नहीं करते हैं। यह किसी भी रैंक के सैनिक और सैन्य कमांड के तहत काम करने वाले नागरिक को भी दिया जा सकता है। 1879 में जेम्स एडम्स के बाद से किसी भी नागरिक को यह पुरस्कार नहीं मिला है। 1857 में महारानी विक्टोरिया द्वारा पहले पुरस्कार दिए जाने के बाद से, सभी पुरस्कारों में से दो-तिहाई पुरस्कार ब्रिटिश सम्राट द्वारा व्यक्तिगत रूप से प्रदान किए गए हैं। यह सम्मान समारोह आमतौर पर बकिंघम पैलेस में आयोजित होता है।

विक्टोरिया क्रॉस की शुरुआत 29 जनवरी 1856 को महारानी विक्टोरिया ने क्रीमियन युद्ध के दौरान वीरता के कार्यों का सम्मान करने के लिए की थी। तब से, यह पदक 1,355 लोगों को 1,358 बार दिया गया है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से केवल 15 पदक दिए गए हैं, जिनमें से 11 ब्रिटिश सेना के सदस्यों को और 4 ऑस्ट्रेलियाई सेना के सदस्यों को दिए गए हैं।

🚺 गढ़वाल राइफल्स  के प्रमुख योगदान 


    📍 प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध में गढ़वाल राइफल्स ने शौर्य का प्रदर्शन किया।

    📍 नायक दरवान सिंह नेगी, विक्टोरिया क्रॉस (VC) (4 मार्च 1883 - 24 जून 1950) पहले भारतीय सैनिकों में से एक थे, जिन्हें विक्टोरिया क्रॉस (VC) से सम्मानित किया गया था। यह दुश्मनों के सामने बहादुरी के लिए ब्रिटिश और राष्ट्रमंडल (कॉमनवेल्थ) सेनाओं को दिया जाने वाला सर्वोच्च और सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है।

    📍 राइफलमैन गबर सिंह नेगी, विक्टोरिया क्रॉस (VC) (21 अप्रैल 1895 - 10 मार्च 1915) प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश भारतीय सेना के एक सैनिक थे। उन्हें विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था। यह दुश्मनों के सामने बहादुरी के लिए ब्रिटिश और राष्ट्रमंडल सेनाओं को दिया जाने वाला सर्वोच्च और सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है।

    📍 गढ़वाल राइफल्स के जवान आज भी कठिन से कठिन परिस्थितियों में देश की सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं।

Kumaon Regiment Centre #गढ़वाल राइफल्स #परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा #Garhwal Rifles
(गढ़वाल राइफल्स के वीर सैनिक)







🚺 आदर्श वाक्य : युद्धाय कृत निश्चय (दृढ़ संकल्प के साथ लड़ो) 

Motto(s)Yudhaya Krit Nishchaya (Fight With Determination)

🚺 युद्धघोष : बद्री विशाल लाल की जय (भगवान बद्रीनाथ के पुत्रों की जय हो) 

War CryBadri Vishal Lal Ki Jai (Victory to the Sons of Lord Badrinath)

🚺 कूच : बढ़े चलो गढ़वालियों  

MarchBadhe Chalo Garhwaliyon

🚺 उत्तराखंड के सैनिकों का योगदान :-

उत्तराखंड को "सैनिकों की धरती" कहा जाता है। यहाँ लगभग हर परिवार से कोई न कोई सदस्य सेना में कार्यरत है।

  • कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 से अधिक जवान शहीद हुए।

  • शहीद मेजर सोमनाथ शर्मा, मेजर शैतान सिंह, नायक दरवान सिंह नेगी, राइफलमैन गबर सिंह नेगी आदि जैसे सैनिक पूरे भारत के युवाओं के लिए प्रेरणा हैं।

  • वर्तमान समय में भी उत्तराखंड के हजारों सैनिक भारतीय सेना, अर्धसैनिक बलों और पुलिस में सेवा दे रहे हैं।

🚺 रानीखेत और लैंसडाउन : सैनिक धरोहर 

  • रानीखेत :– यहाँ कुमाऊँ रेजिमेंट सेंटर (Kumaon Regiment Centreस्थित है, जहाँ जवानों को प्रशिक्षण दिया जाता है। साथ ही यहाँ का सैन्य संग्रहालय भारतीय सेना के इतिहास को जीवंत करता है।

  • लैंसडाउन :– गढ़वाल राइफल्स का मुख्यालय यहाँ है। यह स्थान न केवल सैनिकों के प्रशिक्षण के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है।

🚺 उत्तराखंड और सेना का अटूट रिश्ता :-

उत्तराखंड की पहचान केवल देवभूमि के रूप में ही नहीं, बल्कि वीरभूमि के रूप में भी है। यहाँ के लोग सेना में भर्ती होकर देश की सेवा को गर्व का विषय मानते हैं।

  • हर वर्ष हजारों युवा सेना भर्ती रैलियों में शामिल होते हैं।

  • सेवानिवृत्त सैनिक भी समाज में योगदान देते हैं और युवाओं को प्रेरित करते हैं।

  • उत्तराखंड सरकार भी पूर्व सैनिकों और वीर नारियों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएँ चलाती है।


Kumaon Regiment Centre #गढ़वाल राइफल्स #परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा #Garhwal Rifles
(देवभूमि उत्तराखण्ड की सुंदरता)


निष्कर्ष :- उत्तराखंड की कुमाऊँ रेजिमेंट (Kumaon Regiment Centre) और गढ़वाल राइफल्स (Garhwal Rifles) भारतीय सेना की रीढ़ की हड्डी हैं। इनके वीर सैनिकों ने युद्ध के मैदान में अपनी शौर्य गाथाएँ लिखी हैं और देश की सुरक्षा को सर्वोपरि रखा है।

आज जब हम उत्तराखंड की चर्चा करते हैं, तो हमें केवल उसकी वादियों, नदियों और मंदिरों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि यह भूमि ऐसे रणबांकुरों की जन्मभूमि है, जिन्होंने अपने खून से देश की मिट्टी को सींचा है।

उत्तराखंड वास्तव में देवभूमि के साथ-साथ वीरभूमि भी है।


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