यहाँ से जानिए, Indian Infantry Regiment (भारतीय सेना) की कुमाऊं रेजिमेंट के लिए क्यों खास है ये दिन ? - Celebration Day for Kumaon Regiment Centre...🌺🌹
Infantry Day या पैदल सेना दिवस :-
हर साल 27 अक्टूबर को देश की पैदल सेना के अभूतपूर्व शौर्य के सम्मान में मनाया जाता है। आजादी मिलने के फौरन बाद जम्मू और कश्मीर में भारतीय पैदल सेना (Indian Infantry Regiment) के पहले मिलिट्री ऑपरेशन को याद करने के लिए ये दिन मनाया जाता है, जिन्होंने पाकिस्तानी आक्रमणकारियों से भारतीय क्षेत्र की रक्षा की थी। कश्मीर को जबरन हथियाने के पाकिस्तान के इरादों से भारतीय सेना ने डटकर लोहा लिया था, जिसके सम्मान में 27 अक्टूबर को पैदल सेना दिवस मनाया जाता है।
Indian Infantry Regiment के इस दिन का इतिहास ?
इस दिन भारतीय सेना की सिख रेजीमेंट की पहली बटालियन और कुमाऊं रेजिमेंट की चौथी बटालियन श्रीनगर एयरबेस पहुंची और लड़ाई में असाधारण साहस और दृढ़ संकल्प दिखाया। उस समय, पाकिस्तानी रेंजरों को रोकने के लिए भारतीय सेना एक दीवार बन गई, जिन्होंने कबायली हमलावरों की मदद से कश्मीर में प्रवेश किया था। पाकिस्तानी आक्रमणकारी श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर की ओर बढ़ रहे थे। लिंक रोड के माध्यम से सैनिकों को भेजने में समय लगता और घाटी पाकिस्तानी आक्रमणकारियों के हाथों में आ जाती।
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ऐसे में 26 अक्टूबर की रात को एक आपातकालीन बैठक आयोजित की गई और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सिख रेजीमेंट और कुमाऊं रेजिमेंट को वायुसेना की मदद से सीधे जंग के मैदान में उतारने का फैसला किया। 27 अक्टूबर को तड़के भारतीय वायु सेना के दो विमानों की मदद से सैनिकों के एक हिस्से को एयरलिफ्ट किया गया और शेष को निजी एयरलाइन उड़ानों द्वारा जंग के मैदान में उतार दिया गया। तब से, हर साल पैदल सेना के हजारों सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए इन्फैंट्री दिवस मनाया जाता है, जो ड्यूटी के दौरान शहीद हुए थे।
भारतीय सेना की कुमाऊं रेजिमेंट के लिए क्यों खास है 27 अक्टूबर का दिन ?
प्रथम परमवीर चक्र विजेता (1st Heero of the battle field) : Major Somnath Sharma, PVC (Posthumous)
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कुमाऊं रेजिमेंट के मेजर सोमनाथ शर्मा, परमवीर चक्र विजेता (मरणोपरांत), 4 कुमाऊं रेजिमेंट को उनके अदम्य साहस एवं वीरता और उच्च स्तर की लीडरशिप के लिए ये सम्मान पहली बार भारतीय सेना के इस जाबांज नायक को दिया गया। हर साल 27 अक्टूबर को कुमाऊं रेजीमेंट स्थापना दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
मेजर सोमनाथ शर्मा ने अपना सैनिक जीवन 22 फरवरी, 1942 से शुरू किया। जब इन्होंने चौथी कुमाऊं रेजिमेंट में बतौर कमिशंड आफिसर प्रवेश लिया। उनका फौजी कार्यकाल शुरू ही दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुआ और वह मलाया के पास के रण में भेज दिए गए। 26 अक्टूबर, 1947 को जब मेजर सोमनाथ की कंपनी को कश्मीर जाने का आदेश मिला तो उनके बाएं हाथ की हड्डी टूटी हुई थी, बाजू पर प्लास्टर चढ़ा था। वह कुमाऊं रेजीमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कमांडर थे। साथियों ने रोकने की कोशिश की तो जवाब मिला, 'सैन्य परंपरा के अनुसार जब सिपाही युद्ध में जाता है तो अधिकारी पीछे नहीं रहते हैं।' श्रीनगर के दक्षिण पश्चिम में युद्ध भूमि से करीब 15 किलोमीटर दूर बड़गांव में तीन नवंबर, 1947 को दुश्मनों से लोहा लेते हुए मेजर सोमनाथ शर्मा ने शहादत पाई थी। मेजर ने लगातार छह घंटे तक सैनिकों को लड़ने के लिए उत्साहित किया। यही कारण रहा कि पाकिस्तान को आगे बढ़ने नहीं दिया।
मेजर सोमनाथ शर्मा नवंबर 1947 में श्रीनगर हवाई अड्डे से पाकिस्तानी हमलावरों को खदेड़ते हुए कश्मीर के बडगाम गाँव में गश्ती दल पर अपने आदमियों का नेतृत्व करते हुए मारे गए थे। उन्हें नवंबर 1950 में मरणोपरांत पहला परमवीर चक्र दिया गया था।
ब्रिगेड मुख्यालय को भेजे गए अपने अंतिम संदेश में मेजर सोमनाथ शर्मा ने कहा, "दुश्मन हमसे केवल 50 गज की दूरी पर है। हम भारी संख्या में हैं। हम विनाशकारी आग में हैं। मैं एक इंच भी पीछे नहीं हटूंगा, लेकिन आखिरी आदमी और आखिरी गोली तक लडूंगा।"
(The enemy is only 50 yards from us. We are heavily outnumbered. We are under devastating fire. I shall not withdraw an inch but will fight to the last man and the last round)
नवंबर 1947 में श्रीनगर हवाई अड्डे से पाकिस्तानी हमलावरों को खदेड़ने के दौरान कश्मीर के बडगाम गाँव में गश्त पर अपने सैनिकों का नेतृत्व करते हुए युवा अधिकारी मारा गया था। हिमाचल प्रदेश के दाढ़ गांव के मूल निवासी को उनकी असाधारण बहादुरी के लिए मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
कुमाऊं एवं नागा रेजीमेंट (Naga Regiment) का गौरवशाली इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। देश को पहला परमवीर चक्र दिलाने एवं तीन थल सेनाध्यक्ष देने सहित तमाम उपलब्धियां रेजीमेंट के नाम हैं। विभिन्न युद्ध-ऑपरेशनों में रेजीमेंट ने अग्रिम मोर्चों पर रहते हुए साहस, शौर्य व पराक्रम की इबारत लिखी। कुमाऊं रेजीमेंट ने रानीखेत में नागा रेजीमेंट को खड़ा कर नागालैंड वासियों का दिल भी जीता। वर्तमान में देश के विभिन्न हिस्सों में तैनात रेजीमेंट की 21 से अधिक बटालियनें देश और सीमाओं की रक्षा में जुटीं हैं।
कहा जाता है कि कुमाऊं रेजिमेंट की उत्पत्ति हैदराबाद में 1788 में नवाब सलावत खां की रेजीमेंट के रूप में हुई। 1794 में इसे रेमंट कोर व बाद में निजाम कांटीजेंट का नाम दिया गया। इसमें बरार इंफैंट्री, निजाम आर्मी व रसेल ब्रिगेड को मिलाकर हैदराबाद कांटीजैंट बनाई गई। 1903 में इस बल का भारतीय सेना में विलय हुआ। 1922 में पुनर्गठन करके इसे हैदराबाद रेजीमेंट व 27 अक्टूबर 1945 को 'द कुमाऊं रेजीमेंट' का नाम दिया गया और रानीखेत में कुमाऊं रेजीमेंट सेंटर की स्थापना हुई। 4 कुमाऊं रेजीमेंट की डेल्टा कंपनी ने 1948 में कश्मीर के बडगाम में मेजर सोमनाथ शर्मा के नेतृत्व में वीरता के झंडे गाड़े। इस ऑपरेशन में अदम्य साहस का परिचय देते हुए मेजर सोमनाथ ने पाकिस्तानी कबायली हमले का मुंहतोड़ जवाब देते हुए दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए। मरणोपरांत उन्हें देश का पहला परमवीर चक्र मिला। 1962 में लद्दाख व नेफा क्षेत्र में 13 कुमाऊं रेजीमेंट की चार्ली कंपनी ने मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में चीनी सेना के हौंसले पस्त किए, शैतान सिंह के पराक्रम व वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया। 1965 व 1971 के युद्धों सहित वर्तमान तक के तमाम युद्ध-ऑपरेशनों में कुमाऊं रेजीमेंट ने अग्रणी मोर्चों पर रहकर देश की सीमाओं की रक्षा की है।
इसीलिए हर वर्ष 27 अक्टूबर को भारतीय पैदल सेना और कुमाऊं रेजीमेंट के वीर सैनिकों द्वारा बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
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